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मेरे जनाजे मे उसको भी बुलाना यारों , ना जाने कब मुझ मे जान आ जाए ।



मेरे जनाजे  मे उसको भी बुलाना यारों  ,
ना जाने कब मुझ मे जान आ जाए ।


मैंने लाशों को देखा है ,

उठते हुए उसके दीदार होने से  ।।


               ~ आशुतोष दांगी 

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