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उलझी जुल्फों को सुलझाया तो , फिर वो ही खुशबू याद आई ।



 याद तेरी 

देखा उसे तो लगा यूँ के जान -ए- बहार आई 

रूठी हुई साँसों को फिर सांस आई ।
 
क्या खूब लगती उसकी आँखे ,
झुका ली उसने तो फिर बहार आई ।


होंठों कि लाली का क्या कहना ,
मेरा नाम सुनते ही बहारों कि याद आई ।


उलझी जुल्फों को सुलझाया तो ,
फिर वो ही खुशबू याद आई ।


तुझे देखा महफ़िल मे ,
तो शायरों को गजल याद आई।


मर मिटे जाने जाना ,तेरी चाहत पे,
अब मेरे मरने की बात आई ।


                 ~ आशुतोष दांगी 


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