Header Ads

सफर

 

सफर


ना जाने किस दौड़ का हिस्सा हूं मैं,
जब भी किसी मुकाम पे पहुंचा तो लगा कि जैसे यह मेरा मुकाम नहीं।।


भटकता तो नहीं मैं कहीं मगर , 
अभी तक उस ठिकाने का अंजाम भी हासिल नहीं।।


चले थे कुछ लोग साथ में मेरे मगर जाने कहां गुम हो गए सारे ,
खाली रास्तों पे कोई साथी भी तो नहीं।।


जिंदा हूं मैं एक लाश सा ,
मगर फिर भी मुझे मौत का इंतजार क्यूं नहीं।।


जाने वालों को रोका तो मैंने बहुत ,
लेकिन उन तक मेरी आवाज भी तो पहुंची नहीं।।


समझ लेते बस बात इतनी वो ,
तो दरबदर ना भटकता मैं, 
खैर छोड़ो उनको तो इसकी खबर भी नहीं।।


                                   ~ आशुतोष दांगी 

कोई टिप्पणी नहीं

Blogger द्वारा संचालित.