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सुमालीप्रदेश



सुमाली के जन्म और प्रदेश की संपन्नता पे विचार -

विशाल भारत भूमिपर एक राज्य था जिसका बाहरी दुनिया से कोई वास्ता ना था , ये राज्य अपने आप में इतना संपन्न था । जो की अपने आस पास के समस्त राज्यों और उनमें रहने वाले हजारों नागरिकों का पालन पौषण वगैर किसी समस्या के करता था । इस राज्य का नाम राजा सुमालसिंह की पुत्री सुमाली के नाम पर रखा गया था जिसका नाम सुमालीप्रदेश था । सुमाली बचपन से ही सर्वगुण संपन्न राजकुमारी थी , जिसमें अनेकों गुणों का वास परमात्मा ने पहले से ही दे रखा था । सुमाली बचपन से ही सुंदर एवं अनेकों विद्यायों को जानने वाली राजकुमारी थी , । जिसने युद्ध कौशल में परांगत हासिल कर ली थी और युद्ध विद्या में सुमाली इतनी कुशल थीं जिसपे विजय पाना भगवान इन्द्र के लिए भी मुश्किल था । सुमाली का ज्ञान अनेकों ज्ञानियों में भी यूं था , मानो जैसे आसमान में अनेकों तारों में पूर्णिमा का चंद्रमा हो वह नभ में टिमटिमाते तारों में चंद्रमा के समान थी । सुमाली वक्त के साथ बड़ी होती गईं और अपने राज्य सुमालीप्रदेश के लिए किसी वरदान से कम नहीं थी । सुमाली के विवाह ना होने से पहले वह प्रदेश को अपना सबकुछ समर्पण कर चुकी थी वह तन ,मन और धन से अपने राज्य को सदैव सर्वोपरी मानती थी । वह सदैव ही अपने राज्य को विकसित करने में लगी रहती । सुमाली के इन अथक प्रायशों से राज्य में जल के बड़े - बड़े बांधों का निर्माण कराया गया , बांधों के निर्माण ने सुमालीप्रदेश को एक अमर जीवन दे दिया हो जिससे राज्य में पानी की कभी बाधा नहीं रहीं, सुमालीप्रदेश के किसानों एवं प्रजा को सदैव ही शुद्ध जल की प्राप्ति हुई जिससे राज्य में मां अन्नापूर्णा सदैव ही प्रसन्न रहीं।


सुमाली और सत्यवीर का विवाह -

सबकुछ ठीक चल रहा था लेकिन महाराज सुमालसिंह को अपनी पुत्री की बढ़ती उम्र ना जाने क्यूं अच्छी नहीं लगती थी । वह मन ही मन कुपित होते और महारानी से अपनी समस्या का बखान करते , प्रदेश के कुछ मंत्री एवं आचार्य महाराज को पुत्री के विवाह की सलाह देते जिसपे महाराज पुत्री के लिए योग्य वर का चुनाव कैसे करे इसपे चिंतित होने लगते, किंतु चिंता करना चिंता का समाधान तो नहीं।  फिर ये समस्या इतनी विशाल थी लेकिन उसका समाधान बड़ा ही सीधा था । महाराज ने अजीब सी “तर्क - वितर्क” करने वाली चुनौती को राजकुमारी सुमाली का वर चयन करने का उपाय सोचा और ये ऐलान करवाया जो यह चुनौती को पूर्ण करेगा वो ही सुमाली प्रदेश का राजा होगा । फिर क्या था देश - विदेश से नौजवानों का आना यूं लग रहा था मानो जैसे जल सैलाब में जल का उफान आना । बहुत सारे नौजवान अपना भाग्य और राजकुमारी सुमाली से तर्क - वितर्क करने के लिए अपने आप को तैयार करने लगते हैं। फिर प्रतियोगिता शुरू होती हैं , हजारों सवालों का दौर शुरू होता हैं राजकुमारी के अनेकों सवाल का जवाब जो देगा वही ‘सुमालीप्रदेश’ का भाग्यविधाता बन जायेगा ,किंतु तीन पहर चलने वाली इस प्रतियोगिता में महाराज को होने वाले राजा और सुमाली के लिए राजकुमार अभी तक तो नहीं मिला अब महाराज , को पिता होने पर चिंता नहीं बल्कि एक राजा के दायित्व से चिंतित होना पड़ रहा था । किंतु इतने सारे राजकुमारों में अभी तक कोई योग्य वर दिखाई ना दिया । सब समाप्त होने लगा महाराज ने अब प्रजा में यह ऐलान करवा दिया कि जो कोई नौजवान राजकुमारी को “तर्क - वितर्क” में संतुष्ट करेगा वो सुमालीप्रदेश का राजा होगा तभी एक छोटे से गांव “दंडकगांव” का एक नौजवान राजकुमारी के सभी प्रश्नो का सही उत्तर एवं राजकुमारी को तर्क - वितर्क में संतुष्ट कर देता हैं;  महाराज की खुशी का ठिकाना नहीं रहा उन्होंने नगर में राजकुमारी के विवाह और मंगल कार्यों और राज्य के धनों के भंडार को खुलवा दिया जिससे नगर में मानो दिवाली सी जगमग और त्योहारों सी उमंग आ गई हों । इस नवयुवक को कोई नहीं जानता था खैर वो तो कोई बात नहीं ! नवयुवक में सूर्य सा तेज एवं अपने ज्ञान से वो किसी अवतार से कम नहीं था ; इस नवयुवक का नाम “सत्यवीर” था । सत्यवीर और सुमाली का विवाह होता हैं: सुमालीप्रदेश के राजा अब सत्यवीर थे । जो सुमाली के समान ही प्रजा धर्म को निभाती थी । सत्यवीर अपने परिवार का सबसे ज्येष्ठ लड़का था जिसके सात भाई और थे एवं सभी भाइयों में अनेकों प्रकार से युद्ध विद्याएं थी वो भलेही दंडकगांव से थे लेकिन राजनीति और युद्ध शैलियों में सम्पूर्ण थे । जो प्रजा को भगवान मानते थे । इस तरह के परिवार को देख के यूं लगता जैसे मानो पृथ्वी पर ही स्वर्ग हो और उसकी राजधानी सुमालीप्रदेश हो ।


राजकुमार स्वर्णिम का जन्म -

अब वक्त ने अपने पंख पसारे महाराज सत्यवीर और महारानी सुमाली ने एक पुत्र को जन्म दिया । जो अपने माता - पिता के समान ही सर्वगुण संपन्न थे । अपने नन्हे राजकुमार का नाम “स्वर्णिम” रखा गया । स्वर्णिम युद्ध विद्या में अनेकों प्रकार से संपन्न थे क्योंकि उन ने एक राजकुमार होते हुए जीवन को एक ग्रामीण बालक के समान बिताया था और अपने चाचाओं से युद्ध अभ्यास में महान शौहरत हासिल की थीं । वक्त अब और तेज चलने लगा अब स्वर्णिम एक नौजवान हो गया था । जिसे दूसरे राज्य (शंभुप्रदेश)की सुंदर राजकुमारी “मतिधीरा” से प्रेम हो गया था मतिधीरा चाहती थी , कि उनका विवाह स्वर्णिम से हो किंतु मतिधीरा के पिता महाराज उन्मुक्तचंद से महाराज सत्यवीर से शत्रुता थी जो कभी नहीं चाहते थे की ऐसा कुछ हो ! लेकिन काल चक्र सबकुछ एक सा नहीं चलने देता हैं।






राजकुमारी मतिधीरा और राजकुमार स्वर्णिम का विवाह -

मतिधिरा और स्वर्णिम के प्रेम ने दोनो ही राज्यों पे संकट की घड़ियों को निमंत्रण दे दिया था । स्वर्णिम ने अपने प्रेम को सत्य और दोनो प्रदेश के राजाओं के विरुद्ध जाकर मतिधीरा से विवाह कर लिया । ये विवाह ना जाने कितने संकटों के बादलों को समेट लाए थे । एक और शंभुप्रदेश की सेना दूजी और सुमालीप्रदेश की सेना स्वर्णिम और मतिधीरा को मौत के घाट उतारने के लिए आतुर थीं तो वही स्वर्णिम सभी प्रकार की युद्ध विद्या में निपुड़ थे । और मतिधीरा सभी दिशाओं को जानने वाली एक निपुड सारथी थीं। इस विवाह ने ना जाने कितने नए शत्रुओं को आमंत्रण दे दिया ।

स्वर्णिम का अपने राजघराने से युद्ध -

अब स्वर्णिम को अपने ही राजघराने से शत्रुओं को भांति युद्ध करना पड़ेगा ये धर्मसंकट और विनाश की बहुत तेज ज्वाला थी। अब स्वर्णिम अपनी रथी के साथ युद्धभूमि में थे जहां उन्हें अपने ही संबंधियों का वध करना था । जिन्होंने उन्हें ज्ञान दिया और जो युद्ध वो कर रहे हैं !उसमे निपुण इन्हीं लोगों ने तो किया, किंतु ये दूसरी पताका किस सेना की हैं। जो स्वर्णिम से युद्ध के लिए आईं हैं। इस पताका को मतिधीरा खुब पहचानती हैं वो उनके पिता की सेना की पताका थी । अपने पिता को देख अब मतिधीरा सब समझ गई की उनकी ससुराल और उनके मायके वालों से इन्हे एक साथ ही युद्ध करना पड़ेगा ! ये बात चिंता की थी लेकिन अब युद्ध सर्वोपरि है, तो युद्ध किया जाएं। बिगुल बजता हैं । स्वर्णिम अनेकों बाणों को एक साथ छोड़ते हैं ये विनाशकारी युद्ध ना जाने क्या चाहे लेकिन रणचंडी तो शव मांग रही थीं। युद्ध काफी समय तक चलता रहा तककरीब उन्नीस दिन चले इस युद्ध ने दोनो राज्यों  युद्ध विहीन कर दिया जिसमे स्वर्णिम अकेले ही अपने पिता और ससुर की सेना पर भारी रहे । स्वर्णिम को अपने पिता - चाचा और अपने ससुर का ना चाह कर वध करना पड़ा और इस युद्ध ने अनेकों शव को देखा किंतु युद्ध का परिणाम मोहब्बत के परवानों को अपने परिवारजनों के शवों की आहुति देकर विजय होना पड़ा । स्वर्णिम ने इतिहास के पन्नो को अपने परिवार का खात्मा और खुद पे खूनी स्याही का इल्जाम लेने का इन अजीब मलाल किया लेकिन सब कुछ खत्म था । लेकिन उनकी मोहब्बत अंततः जीत गई अब वो अपने आने वाले भविष्य को निर्धारित करने में शकुचाते हैं। किंतु सबकुछ तो खत्म नहीं हुआ उनका प्यार सदैव के लिए अमर हो गया ।


        ~ आशुतोष दांगी 


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