सुकून
सुकून
लोगों से ज़रा गौर से पुछो किसने क्या गवायां हैं,
फिर हमसे पूछो हमनें क्या गवायां हैं ।।
चैन सुकून वो क्या होता हैं ,
ये तो हमनें बचपने में खोया हैं ।।
एक उम्र तो गुजार दी जागते जागते ,
हमने आंखों पर भी बड़ा जुल्म ढाया हैं।।
ये चाहती थी बंद हो जाना ,
मगर हमने इनको हर पल खुला रखा हैं।।
अब मरीज से इलाज पूछते हैं,
वो जिन्होंने हमें मरीज बनाया हैं।।
की इतनी खूबसूरत क्यों होती हैं,
ये राते मैंने टिमटिमाते तारों में उसको पाया हैं।।
सोचता हूं बंद आंखें क्या देखेगी ख्वाबों को ,
मैंने खुली आंखों से उसके ख्वाबों को सजाया हैं।।
~ आशुतोष दांगी
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