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बिछड़न

बिछड़न


मोहब्बत का ज़िक्र इस दहलीज के अंदर ना किया करो ,
हम दोनों ने मोहब्बत में कई दहलींजे लांघी थीं।।


हुआ क्या फिर वो अपने रास्ते , 
और हम अपने रास्ते हो गए ।।


उसको तो अब शायद याद भी नहीं मैं, 
लेकिन मेरे दिल पे उसके ताजे जख्म रह गए ।।


भुलाने चाहते हैं उसको मगर , 
लेकिन हर दफा उसकी यादों में उसके होकर रह गए ।।


अब जो हम ना रहें तो कहना उनसे , कोई था जो खुदा समझता था आपको और आप केवल इंसान बनके रह गए ।।


खैर छोड़ो अब  उसकी बातें अब दामन हमनें माटी का थामा हैं,
इस माटी के थें ,और इसी माटी के होकर रह गए ।।


                                                   ~ आशुतोष दांगी 

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