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बिछड़ने की ना जाने किस मोड़ पे उसे याद आईं,
मैंने आंखे भरके बस देखा ही था अभी तो ।।

एक तस्वीर निगाहों से दिल में उतारी थी,
ख्वाबों में उसकी रंगत सवारी थी अभी तो ।।

मौसम बेमौसम बरसात कर ही गया ,
मेरी फ़सल कच्ची थी अभी तो ।।

जो रुक जाता तू तो सबकुछ ठहर जाता ,
ख्वाहिश नहीं यही ख़ुदाई थी मेरी अभी तो ।।                                    
                                      ~~आशुतोष दांगी




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