तुझे लिखने को दिल चाहता हैं,
लिखें क्या एक कविता बनाने को दिल चाहता हैं।।
अंधेरी रातों में तुझे पूर्णिमा का ,
चाँद बोलने को दिल चाहता हैं।।
मैं उलझा हुआ एक नादान हूं,
तुम्हे सुलझा हुआ मन कहने को दिल चाहता हैं ।।
मैं नदियों का पानी हूं ,
तुम्हें समन्दर कहने को दिल चाहता हैं।।
देखा ही नहीं मैंने अपने आप को कभी,
आपको आईना बनाने का दिल चाहता हैं।।
~~ आशुतोष दांगी
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