अजीब राह पर आ खड़े हैं,
किसी को याद करते हैं ।।
कोई और नजर आता हैं,
किसी की तलाश में निकलते हैं,
किसी और को मिल जाते हैं ।।
अब तो ये शौक भी नहीं कि घर जाएं,
घर पे कौन मेरा हैं।।
एक दफा सोचा था मैंने बैठूं किसी अपने के पास ,
पहुंचा तो पता चला कौन ही यहां मेरा हैं।।
अब तो इस हाल को बेहाल करना हैं,
उठा हूं एक सवेरे से मैं, बस अब सूरज के संग ही ढालना हैं।।
वो आएगी एक सुकून भरी नींद लेकर ,
ऐसे सोएंगे फिर कहां ही
हमें जागना हैं।।
~~ आशुतोष दांगी
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