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फिर वो यूँ मिली ना जाने कितने दिनों के बाद ,

फिर से मिलने में अब वो बात ना थी ।


पहले जो हस्ती खिल -खिलाती थी, 

अब वो कुछ उदास सी थी ।


पहले जो खुद बालपन में थी ,

देखो आज वो जमाने भर से समझदार सी हैं।


जो पूछा हल-ए-दिल मैंने उसका,

तो एक झूठ बोलने लगी,


जो कुछ और कहती वो, 

तो साँसों कि सिसक ने बता दिया हाल उसका । ।


फिर यूँ देखा नम आँखों से उसने मुझे , 

लगा यूँ के भर लूँ बाहों में ,

मैं उसे फिर खुदने ही जाना ,

के अब वो बात नहीं।

                    

जिसका जिक्र करता ख्वाबों में ,

मैं आज वो मेरे सामने होकर भी मेरे पास नहीं ।


फिर अलविदा कहने लगे वो , 

तो दिल ने जाना के सच में

 ये कोई ख्वाब तो नहीं ।।

                               ~~ आशुतोष दांगी 

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