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हमारे लिए बेहतर ये होगा अब की हम अपने रस्ते हो जाएं,

अदब में बेअदबी हमें मंजूर तनिक भी नहीं ।।


ख्वाहिशों की चाहत में बेइज्जती मंजूर नहीं ,

जानते तुम भी हमें खूब हो , 

किस हद तक हम ठहरेंगे या न जाने कब बिफर जाएंगे ,

इससे बेहतर यहीं होगा हम अजनबी हो जाएं ।।


दुख ये नहीं कि हम जुदा हो रहे हैं,

मसला तो तेरे हमें ना समझने का हैं ।।


खुद को हम एक हद तक खींच लाएं , 

यहां से सफर अकेले गुजार देंगे ,

जज़्बाती होकर फैसले न लेंगे अब हम ,

कहेगा जो दिल कुछ इसको भी समझा लेंगे ।।


की दिमाग के जमाने में यार तेरी कौन सुनता हैं,

हम पागल से हैं जो तेरे हर फैसले को सिर आंखों पर रखते हैं।।


अब जो हमारा दिल टूटेगा इसकदर तो , 

खुद क्या संभालेंगे, 

जाम का शौक नहीं हमें ,

हम चाय से काम चला लेंगे ।।


आओगे जो फिर कभी तो बैठाएंगे तुमको,

हमारे दिल की अदालत में ,

गुनहगार तुम यार होगे ,

दिल बेहगुनाह हमारा होगा ,

बहुत खेल लिए खेल दिल से इसकी वकालत का 

जिम्मा दिमाग हमारा होगा ,


बड़ा खेल खेलते हो तुम जज़्बात से ,

अबकी दफा जरा संभल कर आना ,


यहां तारीख की बात न होगी ,

अदालत हमारी होगी और तारीख की शिकस्त बस तुम्हारे चेहरे पर होगी,


याद तो आओगे हमें , 

कहते फ़िरोगे सबसे की इश्क में बेवफाई ना हो ,

हो कुछ मगर यूं रुसवाई ना हों ,

दिल तोड़ना खेल है हसीनो का ,

लेकिन ये खेल किसी के साथ ना हो ,

हम जो पेश आयेंगे हमारे अंदाज से तो जान जाओगे अपने अंदाज ए करम को ,

मिला था कोई आशिक़ मेरा ,

मुझे चाहने वाले की मैं ही दुश्मन हो गईं,

वफ़ा करनी थी उससे मगर ,

जाने में क्यों बेवफा हो गईं ,

भूल जाओ मुझे ये बेहतर मेरे लिए होगा ,

जिंदगी आसान हैं तुम्हारी ,

से मेरे यार मुझे इस जिल्लत भरी जिंदगी और इस जिंदगानी से अलग करो ।। 

                                        ~~आशुतोष दांगी







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