Header Ads



 एक नदी किनारे बैठा कोई मेरे जैसा शख्स लगता हैं,

ज़माने के शोरगुल से एकांत सा लगता हैं ।।


एकांत ये मन बहुत खूब जचता हैं,

जो ना हैं पास उन्हीं के सपने बुनता हैं ।।


पानी सा चंचल मन मेरा ना जाने किस ने कंकड़ मारा इसमें,

एक चेहरा बनाया था इसने खूबसूरत बस उसी चेहरे पे जा उलझता हैं ।।

                             ~~ आशुतोष दांगी






कोई टिप्पणी नहीं

Blogger द्वारा संचालित.