Header Ads



 हम उनकी महफ़िल में पहुंचे तो तमाशा सरेआम हो गया ,

मेरा चाहने वाला सफेद चादर ओढ़ के सो गया ।।


जानने वाला कोई ना था उसके सिवा मुझे ,

जो हाथ जनाजे को लगाना चाहा मैने तो कत्लेआम शुरू हो गया ।।


कहीं चैन से सोया हमसफर मेरा ,

देख के मुझको बदहोश सा , 

सोया था जो शख्स वो भी परेशान हो गया ।।


फ़िर जनाजा चला उनका ,

मेरे बग़ैर चलना गैर जिसे था , 

मेरे साथ चलने वाला भीड़ में सबसे आगे था ,

ज़रा देखो इसे कभी जो सिर्फ मेरा था,

आज वो मुझसे ग़ैर हो गया ।।

                       ~~आशुतोष दांगी



कोई टिप्पणी नहीं

Blogger द्वारा संचालित.