उसके चेहरे पे रौशनी बिखेरते चांदनी शर्माती हैं ,
वो जो मुस्कुरा दे तो कलियों को जलन हो जाती हैं।।
उसके होंठो की लाली देख ,
ग़ुलाब की पंखुड़ियां सिकुड़जाती हैं।।
वो जो छू ले पत्थर को ,
तो वो भी पारस बन जाता हैं।।
जो वो ज़ुल्फ को संवारे तो ,
मेघ गर्जना शुरू कर देते हैं ।।
वो जो स्पर्श कर दे विष को ,
तो स्पर्श से उसके विष अमृत सा शबाब बन जाता हैं।।
वो जो लगा ले काजल आँखो में ,
तो यूं लगे जैसे ब्रह्मकमल खिल जाते हैं।।
वो हैं तो इन नज़ारों में नज़राने होते हैं,
उसके होने से वन में वसंत होता हैं,
वो जो ना हो तो सब सूखा रेगिस्तान सा लगता हैं ,
उसके होने से ही तो ये मेरे जैसा शख्स आशुतोष सा लगता हैं।।
~~ आशुतोष दांगी
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