तेरे बगैर ये खुशियां तमाम ना मंजूर हैं हमको ,
तेरे जैसा नहीं केवल तू मंजूर हैं हमको ।।
हसीन चेहरे लाख जमाने में मगर ,
एक तेरे चेहरे की मुस्कुराहट मंजूर हमको,
तू नहीं तो सावन का आना पतझड़ सा हैं,
खिलखिलाती फिजाओं का रूठ जाना सा हैं।।
बसंत का महकना उन्हें मंजूर हो ,
हमारे लिए तो सब रेगिस्तान सा हैं।
तेरे बाद तेरे शहर से जाने का जी चाहता हैं,
लगा दूं आग बस्तियों को बस ये आशुतोष चाहता हैं।।
कितना संभाले ख़ुदको भी हम ,
ये शांत सा लड़का सारी शांति तोड़
ना चाहता हैं।।
~~ आशुतोष दांगी
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