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क्या खूबसूरत होती होगी वो बातें जो उसके होंठों से निकलती होगी ,

बाग की कलियां महक उठती होगी जब वो उन्हें छूती होगी ।।


गुलाब की चिटकल भी शर्माती होगी जब वो उसे देखती होगी ,

जो आंख उसे देखती होगी वो फिर किसी और पे ना ठहरती होगी ।।

वो जब रेगिस्तान में जाती होगी तो वहां हरियाली फ़ैल जाती होगी ,

आंखे नीलकमल सी उसकी फिर उनको काजल से सजा लेती होगी ।।

चंचलता उसके मन की नदियों को ख़ूब भाती होगी ,

उसके चेहरे पर कैसे नज़र रोके वो दो पल में सब मोहिनी कर जाती होगी ।।

उसको देख के कोयल बागों में गीत सुनाने लग जाती होगी ,

मुझसे पूछते क्या हों रातों की नींद का ,

जो याद कर लूं उसे मैं फिर मुझे क्या नींद आती होगी ।।

                                   ~~आशुतोष दांगी      

  

 

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