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किसी रोज फुर्सत में बैठो तो जानो किरदार मेरा ,

मैं जो हूं असल में बच्चों सा,

ये भ्रम जाल हैं मुस्कुराने का ।।


खुद को मैंने ही अपना रखा हैं,

वरना समझदारो की भीड़ में कौन पूछे हाल मेरा ,


कच्छी उम्र निकलता वक्त छीन लेता हैं सबकुछ,

एक उम्र में खो गया बचपना मेरा ।।


मैंने खुद को रोके रखा , 

वरना सबकुछ तबाह कर देता ये ख्वाब मेरा ।।


किसी गैर से शिकायतें क्या ,

जब जानने वाले ही ना

  जाने हाल मेरा  ।।

                                   ~~ आशुतोष दांगी 

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