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सुकून को खोजते खोजते हम परेशानियों में आ उलझे ,

किसी को ढूंढने निकले थे और खुद को भूल बैठे ।।


सफर में ना जाने कितनी दूर तक आ गए,

मंजिल का पता नहीं हम जाने किसकी तलाश में आ निकले ।।


कभी किसी मोड़ पर याद आ जाएं हम तो जानना यह,

तेरे दिल में रहने वाले अब सड़कों के सफर में बड़ी दूर आ निकले ।।


किसी रोज तुम आओगे ढूंढने हमें इस उम्मीद में दिल रहता हैं,

ऐं आने वाले देर करना आदत तेरी , 

इस बार जल्दी आना , 

खुदको तो रोक रखा मैंने,

मगर इस बार मेरी 

जान निकले ।।

                         ~~ आशुतोष दांगी 


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