Header Ads



सुना हैं टूटते तारे से दुआ कबूल होती हैं,

जाने कब ये तारे टूटते होंगे ।।


एक उम्र से दुआ कबूल ना हुईं मेरी,

जाने खुदा क्या सोचते होंगे ।।


कोई पता दो मुझे जाने कहां,

झिलमिल तारे कबूलनामा लिखते होंगे ।।

                                  ~~ आशुतोष दांगी



कोई टिप्पणी नहीं

Blogger द्वारा संचालित.