Top 15 Best shayari में हम लाएं हैं आपके लिए मां के ऊपर सबसे बेहतरीन कविता। जो मां के विभिन्न रूपों को दर्शाता हैं। जो पेश करता हैं कि मां सिर्फ जन्म देने वाली नहीं होती बल्कि , मां तो वह शब्द हैं जो हमें अपनत्व और शीतलता की छाँव में रखती हैं
1-) यूं रूठ गए मां यशोदा से कन्हैया ,
की ना जाने मुझे कितने नाच - नचाती हो ।
थोड़ा सा जो माखन मैं मांगू ,
तो तुरंत स मना कर जाती हो ।
विश्व गुरु को देखकर ,
मां आनंद से भर जाती हैं ,
त्रिलोक के स्वामी देखो कितनी चंचलता दिखलाते हैं।
तीनों लोकों में जिसको पाना कुछ भी ना असंभव हो ,
कैसे माखन को मैय्या से मांगे , कैसे मैय्या से रूठे ,
फिर अश्रुभरी निगाहों से मां को देखे , ऐसा मनोहर दृश्य बनाते हैं,
देख दृश्य अद्भुत त्रिपुरारी , मन ही मन मुस्कुराते हैं।
कहते बार बार हो तुम्हें नमन हे तीनों लोकों के स्वामी ,
मां पुत्र के रिश्ते को क्या खूब दिशा दिखाते हो ।।
2-) मेरी दादी जग से प्यारी ,
मुझके सदा प्रसन्न रखती हैं । ।
मांगू जो एक खिलौना ,
पूरा कमरे को भर देती हैं।।
जो मारे मुझको कोई तो ,
उसपे चिल्लाने लगती हैं।।
कुछ गलत करूं मैं,
तो प्रेम से मुझको समझाती हैं।।
मां अगर ना दे टाफी मुझको ,
फौरन दादी हिटलर बन जाती हैं।।
राम राम का जाप कराके,
मुझको मंत्रमुग्ध कर देती हैं ।।
मेरी दादी जग से प्यारी ,
सदैव निश्छल प्रेम करती हैं।।
3-) उम्र में हम दोनो की बस फर्क हैं,
साल दो - चार साल का फिर भी मुझको खूब समझती हैं ।।
संकट जो आए मुझपे तो ,
खुद संकट से लड़ती हैं।।
बेशक हो गिले शिकवे हजार ,
तब भी हर वक्त मुझको आसानी से समझती हैं ।।
दूर हो मां तो क्या ,
उसकी कमी दीदी पूरी करती हैं ।।
एक मां के बाद वो मेरा,
मां के जैसा ख्याल रखती हैं ।।
मेरी दीदी जाने सबसे अलग लगती हैं,
मां का रूप हैं वो ,
पर थोड़ी ना मां जैसी लगती हैं ।।
उसके होने से घर भरा सा लगता हैं,
ना हो वो तो घर काटने को दौड़ता हैं ।।
ना हो वो तो घर बस सूना सा रहता हैं,
वो हो तो घर जगमग सा रहता हैं ।।
4-) जो धारण किए है हमें ,
अपनी गोदी मैं उस धरती मां को नमन करूं,
महिमा जिसकी वेद हैं गाते उस धरती मां को स्नेह करूं ,
खुद कष्ट सहकर जो हमको अन्नदविहार कराती हैं ,
उसके चरणों में मैं खुदको अर्पण करता हूं ,
हां उस धरती मां को स्नेह मैं करता हूं । ।
जिसके होने से जीवितों में प्राण हैं,
जिसके कारण मनुष्य धनवान हैं,
उस धरती मां के चरणों में मैं अपना शीश झुकाता हूं
हां में उस धरती मां को स्नेह करता हूं ।।
जो रेगिस्तानों में जीवों को पाले ,
और जो अपने अंदर समुंदर को समेटे हैं,
जो अपने ऊपर शीश पर हिमालय को धारण करती हैं,
मैं उस धरती मां को वंदन करता ,
हां में उस धरती मां को स्नेह करता हूं ।।
5-)जितनी मौज थी मां हमने करली तेरे आंगन में,
अब जमाना हम में हमारी समझदारी देखता हैं ।।
जो देख के हाल समझ जाती थी ,
मेरे चुप हो जाने पर दुलार लेती थी ।।
कभी जो होती थी नम आंखे मेरी ,
वो फ़ौरन समझ जाती थी ।।
क्या गुजरी हैं मेरे लाल पर ,
और वो हर समस्या का हल निकाल देती थी ।।
एक मां ही तो थी जो मेरे चुप हो जाने पर ,
खुद उदास हो जाती थी ।
एक मां ही तो थी,
जिसके आंगन में मैं खिल - खिल खिलाता था ।
मगर अब ये जहां हम में हमारी समझदारी देखता हैं।।
6-) खुदके घर से दूर एक घर ऐसा लगता हैं,
मानो न हो मेरा वो पर मेरे घर सा ही लगता हैं ।।
जाने क्यूं लोग यहां के,
मुझको मां के नाम से पहचानते हैं ।।
एक बूढ़ी मां मुझको किस्से उसके सुनाती ,
इस घर के बच्चे उनको मेरी नानी कहते हैं ।।
देखूं उसको तो मां के जैसा चेहरा लगता हैं,
वो मेरी ही नानी हैं ऐसा फिर सब कहते हैं ।।
पराया हैं यह घर ये फिर भी ,
मेरा सबपे रौब बराबर चलता मेरा चलता हैं ।।
नानी के होने से तो बादशाह बना मैं फिरता हूं ,
जो डांटे कोई मुझको तो वो ,
फ़ौरन उनको आंख दिखा देती हैं ।।
नानी मेरी सबसे प्यारी ,
मेरी टोली बस इसी टशन में रहती हैं ।।
7-) जिसके होने से मुझको मेरा घर मेरा लगता ,
जिसके होने की ही आहट भर से मैं शेर बना फिरता हूं।
जो वो हो पास तो मैं आकाश में उड़ता पक्षीराज सा रहता हूं ,
आनंद विहार में घूमते बाघ बना फिरता हूं ।।
जल में जिस प्रकार से मछली अपना भ्रमण करे ,
वो हो तो लगे ऐसा जैसे रक्षा मेरी यमराज करे ,
मेरी मां के होने भर से में आजाद पवन सा रहता हूं ।।
भय क्या हैं? जब वो पास मैं मेरे हो तब मैं,
अभय वरदान लगे ब्रह्मा से लिए हूं में ,
वो हो पास में मेरे तो मैं ब्रह्मांड में तारों सा चमकता रहता हूं ।।
मां हो साथ में मेरे तो मैं हरियल और वो मेरी लकड़ी हैं ,
मैं उसके होने भर से खुद आजाद बना फिरता हूं ।।
8-) तीनों लोकों के स्वामी को देखो कैसी माया सूझी,
खुद संपूर्ण होकर भी पृथ्वी का गौरव आज बड़ाया ।
मां अनसुईया के पलने में आकर ,
मां शब्द को ब्रह्म बताया ।।
होते रूप अनेक ब्रह्मांड के सबको ,
मां का रूप बताया ।।
जिन देवों को तीन लोक का संसार भी कम ,
आज उन्होंने अपने कद को मां अनसुईया के पलने में समाया ।।
जिनकी आज्ञा से न हिले एक पत्ता भी ,
उनको देखो माता ने अपनें एक इशारे पर नृत्य करवाया ।।
जिनसे चलती प्राण वायु ,
जो रहते समस्त बंधनों से मुक्त ,
मां के होने से देखो उन्होंने अपने आप को कैद पाया ।।
9-) मां शब्द नहीं ये तो सम्पूर्ण ब्रामांड हैं,
शब्दों से क्या व्याख्या करूं मैं इसकी ।।
जो खुद धूप में रहकर हमको शीतलता देती हैं,
चाहे आंधी हो या तूफान ,
हमेशा अडिग शिला सी डटकर खड़ी रहती हैं ।।
हिमगिरि का हिम मां मेरी मुसीबत में बन जाती हैं,
अगर आए मुसीबत फिर भी मुझपे,
वो ज्वाला के समान तेज बरसाती हैं ।।
मां मेरी हर मुसीबत से लड़ जाती हैं ,
कितने उपकार हैं उसके मुझपर,
पर वो इसको छड़ भर भी ना दिखलाती हैं।।
मां के होने से सारा जग अपना सा लगता हैं,
दूर हो वो आंखो से एक पल को ना जाने क्यों ,
मुझको डर सा लगता हैं ।।
मां मेरी हरपल मुझको ,
जमाने की बुरी नजर से बचाती हैं ।।
10-) किसी ने अपना सबकुछ खोकर मुझको पाला हैं,
पतझड़ में वसंत का खुमार किस ने मुझपर डाला हैं।।
रंगों से नाता दूर तक ना था,
वो मुस्कुराएं तो इंद्रधनुष सा हमको खिल -खिला डाला हैं।।
उनको आए मुसीबत लाख मगर ,
मुझको अपने आंचल के कवच में पाला हैं।
जब ना थी सूर्य की किरण मेरे लिए ,
तब मां ने ही तो अंधकार से निकाला था ,
हां मेरी मां ने मुझको बड़ी मुसीबतों से पाला हैं ।।
कोई ले सकता ना जगह मां की ,
ईश्वर ने खुद ये माना हैं।।
हां मेरी मां ने मुझको बड़ी मुसीबतों से पाला हैं।
जाने जिद में इतनी क्यूं करता हूं ,
फिर भी उसका प्यार मुझपे उतना ही ,
जितना सागर में पानी हैं ।।
नमन हैं सीस उसके चरणों में ,
जिसके होने से हर पल एक सुनहरा पल जैसा हो ।
हां उसको नमन जिसने मुझको इस लायक बनाया हैं ,
हां मेरी मां ने मुझको बड़ी मुसीबतों से आशुतोष बनाया हैं ,
हां उसने मुझे बड़ी मुसीबतों से पाला हैं ।।
11-) वृक्षों की जड़ हो जैसे ,
बिन पानी के मछली जैसे ,
ना हो वो तो यूं लगता ,
शरीर बग़ैर प्राणों के जैसे ।।
जगमग तारे हजार मगर ,
मगर सूर्य की वो किरण जैसे ,
उपग्रह तो लाख मगर ,
चंद्रमा पृथ्वी पर सवार जैसे ।।
रक्त प्रवाह शरीर में,
मगर विन ऑक्सीजन के जैसे ,
जीवित होकर भी मृत दिखें,
मां के वगैर ये संसार जैसें ।।
मां हो तो सब खुशियां जैसे ,
परियों की कहानी में एक देवी जैसे ,
मां शब्द ही तो हैं, देवों की वाणी जैसें ।।
12-) मां के वगैर जीवन यूं लगता हैं,
सबकुछ होकर भी कुछ पास नहीं हमारे ,
लोगों की एक बदली जुबान ,
और मिलने का अंदाज उनका अलग सा लगता हैं ।।
मुझको देखकर लोग ना जाने क्यूं,
बड़ी उदारता दिखलाते हैं ।।
मैं जाने क्यूं सबकी नज़रों में बेचारा बना रहता हूं,
खुद चाहूं खुलकर जीना फिर भी गुमसुम सा रहता हूं ।।
मां के ना होने से खुद में कितना बिखरा हूं मैं,
कैसे यह सबको बतलाऊं मैं,
जो याद कभी आएं तो बंद कमरों में अंश्रुओं को बहा लेता हूं ।।
कोई जो पूछे फिर मां का तो बस मुस्कुरा देता हूं ,
ना होता मैं लाचार ,
दीन दुनिया की नजरों में ,
मां जो होती तो बस दो पल खुलके जी लेता मैं,
हो सकता मेरी मां मेरे हिस्से की खुशियां ,
स्वर्ग में किसी और को बांट रही होगी ,
खेल ऊपर वाले के वो जाने और फिर ,
उसके माने भी तो हम क्या माने ,
उसके एक खेल ने हमसे हमारा सबकुछ छीना हैं ।
मांगता हूं बस ये दुआ अब किसी से ने साया मां का छीनना
बैरंग सा नजारा नजर आता हैं रंगों की महफिल में ।।
सब पराया सा हो जाता हैं खुदका होकर भी ,
जीवन एक बोझ सा लगने लगता हैं,
जब मां का ना होना अखरता हैं ।।
13-) एक पौधे से हमको वृक्ष बना दिया हैं उसने ,
खुद कुछ ना होकर भी सबकुछ बना दिया हैं उसने ।
आंखो में आशुओं का जो सागर उमड़ा ,
उसको दरिया बना दिया हैं उसने ।
जो कभी दिखे तूफानों के साहिल ,
अपने आंचल में छुपा लिया उसने ।।
जो बिगड़ते हालात मेरे ,
खुदके होश उड़ा दिए उसने ।।
एक मां ही तो हैं वो ,
जिसके लिए मैं कहता हूं ,
आशुतोष को आशुतोष बनाया उसने ।।
14-) नमन करूं मैं धरती मां को ,
फिर नमन करूं मैं अपनी मां को,
जिसने मुझे यह अवतार दिया ।।
एक ने जन्मा मुझको तो ,
एक ने वीरों सा सत्कार दिया ।।
फिर नमन करूं मैं ,
उस मां को जिसने उद्धार किया ।।
ऋणी हूं मैं इस धरती मां का ,
जिसने जीवन भर मुझपर यह उपकार किया ।।
दूर रहां जो एक मां के आंचल से ,
दूजी मां ने आंचल ढाक दिया ।।
लगा जो नींद आई मुझको ,
तो अपनी शीतलता की झोली मैं मुझको छुपा लिया ।।
फिर अंतिम नमन उस मां को भी ,
जिसने मेरी खातिर अपनी पुत्री का मोह त्याग दिया ।।
15 -) मां नहीं तो जीवन ,
एक सूखा सागर सा लगता हैं ।
जिसके होने से ही तो,
मुझे अपना घर अपना सा लगता हैं।।
चेहरे पे हो शिकस्त मेरे ,
देख लूं जो उसे ना जाने क्यूं मुझमें,
एक ऊर्जा का स्त्रोत बहने लगता हैं ।।
एक मां ही तो हैं,
जिसका प्रेम सदैव ,
निश्छल सा मुझपे बहता रहता हैं।।
मां ना हो तो जाने क्यूं ,
मैं मृत बना फिरता हूं ,
एक मां के होने से ही तो मैं,
मृत से जीवित बना रहता हूं ।।
फूल हूं मैं उसके बाग का,
ना हो वो तो मुरझाया सा रहता हूं ,
जो गूंज उठे उसकी आवाज ,
फिर मैं दिन भर खिलता रहता हूं ।।
~~आशुतोष दांगी
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