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Top Best hindi shayari for mother

मां के लिए बेस्ट कविता , दिल छूने वाली कविताएं आपको पेश करते है हम


1) जब ब्रह्मा बनाने चले ब्रह्म खुद भी अचरज में पड़ गए ,

पृथ्वीलोक का वैभव केवल धन नहीं।।


परिपूर्ण कैसे हो पृथ्वीवासी,

जिनके लिए प्रेम हो निश्छल सा ।।


फिर ब्रह्मा को युक्ति सूझी,

क्यूं ना जाए श्री भगवान के पास ।।


जो खुद सबको निश्छल ही प्रेम करते ,

और रूप अनेक रखते ।।


श्री भगवान आंख मूद कर ,

मन ही मन मुस्कुराते हैं ।।


कहते हे ब्रह्म पृथ्वीवासी को मेरा रूप दो ,

मां का अस्तित्व बनाओ तुम ,

जो निश्छल होगा हर युग में ।।


मैं हर युग में यह आशीष पाऊंगा,

मां के प्रेम को हर युग में अमर कर आऊंगा ,

कभी मैं यशोदा का कृष्ण,

तो कभी कौशल्या का राम बन जाऊंगा ।।


इतना सुन ब्रह्म चले अपने लोक ,

बना दिया ब्रह्मांड सा लोक ,

मां के अंदर समां दिया ब्रह्मा ने तीनों लोकों का प्रेम ।।





                   


2-) मां भारती के लाल हैं हम,

कभी न मस्तक झुकने देंगे इसका ।।


हिमालय सा अडिग इसका स्वाभिमान ना कभी झुकने देंगे,

आएगी जो बात कभी तो प्राणों को न्यौछावर हम कर देंगे ।।


पाला हैं जिस जननी ने हमको ,

उसकी खातिर रण में दुश्मन के दांत खट्टे हम कर देंगे ।।


आएगी जो बात कभी तो, 

रक्त की नदियां हम बहा देंगे ,

फिर भी जो बात बनी ना तो ,

खुद को जाने फिर हम क्या कर देंगे ।।


इस धरती ने हमको जो गौरव दिया,

कभी न उसका शीश हम झुकनें देंगे ।।


आंख उठाई जो किसी ने फिर हम ना जाने ,

जीवन क्या हैं उसका , 

फिर उसकी जीवन लीला समाप्त हम कर देंगे ।।


 


    

3-) " विश्वगुरु को गुरु बनाया ,

          मां ने ही तो ये रूप दिखाया "




4-) ना जाने खुद में कितने रूप समाएं मां रहती हैं ,

जो मैं लगूं उसे अनपढ़ सा तो खुद गुरु बन जाती हैं।


जो लग जाएं कभी मुझे तो फौरन वैद बन जाती हैं,

जो हो जाऊं मैं उदास तो फौरन मनोरंजन करता बन जाती हैं।


जो तोड़ दूं मैं कुछ तो मुझको आँख दिखाती हैं,

जो मांगू कुछ में खाने को तो फौरन रसोइया बन जाती हैं ।


जो दिखूं संकट में मैं तो संकटमोचन बन जाती हैं,

मां मेरी घर के सभी सदस्यों का काम खुद ही अकेले ही कर जाती हैं।


कभी जो धूप लगे मुझे तो झट से आंचल ढक जाती हैं,

ना जाने मां मेरी खुद में कितने रूप सजाती हैं।।


                 


            


5-) मैं ना जाने क्यों सबसे बैर कर लेता हूं ,

मगर सबसे कहता फिरता हूं मां हैं ना ।।


घर में तो मैं किसी से वैसे भी नहीं डरता ,

क्योंकि मां हैं ना ।।


मेरी मुसीबतों का तो मुझसे कभी सामना नहीं हुआ ,

मुसीबतों से कहता हूं मां हैं ना ।।


कुछ इस तरह बेखौफ हूं मैं सबसे ,

जैसे जंगल में शेर ,

क्योंकि मां हैं ना ।।


कभी किसी ने जो बुरा कहां मुझसे फौरन ,

इतराता मैं और कहता रुक जरा

मां हैं ना ।।


पिताजी ने जो कभी डाटा तो रोने लगता हूं मैं,

फिर उदास होता मैं तो ख्याल आता हैं चुप हो जा ,

क्योंकि मां हैं ना ।। 




  6-) हो आशीष तुम्हारा खुद में मैं निखर जाता हूं,

जो कुछ भी सीखा तुमसे फिर उसपे मैं इतराता हूं ।


मां ने ही तो मुझको ज्ञान शिला का लेख दिया ,

जिसको लेकर मैं अडिग हिमालय सा डट जाता हूं।


खुद अनपढ़ होकर भी उसने मुझको संपूर्ण किया ,

जिसके संस्कारों से में खुद को ब्रह्म के समान पाता हूं ।


मां ना हो तो जीना एक पल भी आसान नहीं ,

जिसके ना होने से गुरु में भी ज्ञान नहीं,

उसके बस एहसास मात्र से इतना सब कुछ मैं लिख पाता हूं ।


विशाल सागर में मैं एक बूंद सा , 

फिर उसके होने से सागर बन जाता हूं ,

एक मां के होने से ही तो मैं कवि बन जाता हूं ।।


       


             

 

7-) जग में रिश्ता ऐसा ना अटूट कोई ,

जो करे बराबरी मां बेटे की ।।


खुद रहकर पीड़ा में ,

हर लेती पीड़ा अपने बेटे की ।।


एक तरफ जब जग हो जाएं,

मां फिर अपने बेटे का साथ निभाएं,

ना करे वो परवाह फिर जमाने की ।।


बेटा चाहे क्यूं ना वृद्ध हो जाएं,

कद उसका फिर भी मां की नजरों में,

बालक सा ही नजर आएं ,

वो फिर भी उसको ऐसे माने 

जैसे बात हो उसके बचपन की ।।


बेटा चाहे दूर हो मां से ,

मां को एक पल ना आराम आएं,

सताती रहती चिंता उसको, 

फिर नींद उड़े उसकी रातों की ।।


खुद से ज्यादा चाहे वो जिसको ,

फिर आंखों से दूर करे वो उसको ,

वक्त हैं ये मौज छोड़नी पड़ती हैं,

बेटे को फिर अपने बचपन की ।।


पिता से कुछ ना कह पाएं बेटा ,

बस चुप चुप सा हो जाता हैं,

देख दसा अपने कलेजे की,

मां जाने कितनी दफा रोती हैं,

फिर कहती मर्जी शायद यहीं हैं नियती की ।।



           


8-) ना जाने कितनी मुसीबतों के बाद हम में यह हुनर आया,

कुछ ना होकर भी हमनें सबकुछ पाया हैं।।


यूं ही यह सफर इतना बढ़ता नहीं चला गया ,

बुरी नजरों से बचाकर किसी ने,

मुझे यह मुकाम हासिल करवाया हैं।।


जब भी खुद में टूटा मैं ,

तो चेहरा मां का नजर आता हैं ।।


मेरे गुम हो जाने पर वह तुरंत समझ जाती हैं,

क्यूं चुप हैं लाल मेरा फिर वह सब ठीक कर जाती हैं।।


हां मां ही तो हैं वो,

जो चेहरे के हाव - भाव से सब समझ जाती हैं ।। 


कभी रूठता तो मुझको प्यार से पुचकार लेती वो,

वो मां ही तो हैं जो आशुतोष को आशुतोष बनाती हैं ।।



                

9-) आज जो दूर हुआ मैं घर से याद तेरी आती हैं,

मना बेशक नाटक करता मैं खाने में ,

मगर अब वो खाने की थाली भी तड़पाती हैं ।।


रूठ जाता जो मैं तेरी बांतों पर फिर तु मुझकों मानती ,

तेरे प्रेम की मुझको याद सताती हैं ।।


खुद रहता था राजकुमार सा मैं तेरे आंगन में,

अब रंक सा दर बदर फिरता हूं,

ना जाने क्यों मगर मुझको तेरी बहुत याद आती हैं ।।


जो जाना होता मुझको कहीं,

तो मेरा श्रृंगार मां कर जाती थीं,

लेकिन जो दूर हूं तुझसे मुझको सारी बांते रुलाती ।।


मेरी मां मुझकों बहुत याद आती , 

हां मुझको मेरी मां याद आती हैं ।।


   


          


10-) जिसके होने से घर को घर समझा जाएं,

उन्हीं के कारण घर रौशन हो जाएं ।


ना हो वो तो एक घर एक पल ना घर सा लग पाएं,

जो सुबह से उठकर जाने कितने नाज उठाती हैं ।।


खुद चाहें हो परेशान फिर भी,

दूसरों को परेशानी से निकाल लाती हैं ।।


सुबह से उठकर सभी का काम हस्ते हस्ते कर जाती हैं,

जिसके होने सा खाना स्वाद अपनेआप लग जाता हैं।


वो ना हो तो फिर कहां घर घर सा लग पता हैं,

स्त्री रूप अनेक रखकर सबकी मुराद पूरी करती हैं।।


कभी न देखा थकता मैने उनको,

वो जाने कोनसे सवार का रूप रखती हैं ।।


जब भी देखों तब खुद में वो ,

नवऊर्जा को समाहित करती हैं।।


     


               


11-) मेरी उम्र ने बस थोड़ी सी ही तो छ्लांग मारी हैं,

मेरा बचपन ना जाने कहां खो गया ।।


अभी तो में मां के पलने में तुतलाता था ,

अब ना जाने क्यों में मुस्कुराना भूल गया ।।


अभी तो मैं मां के हाथो से खाना खाता था ,

मगर ना जाने कहां से मुझपे ये उम्र का तराना आ गया ।।


जिसके ना होने से मैं बेचैन हो जाता था ,

आज उसके ना होने से में कुछ नहीं सोच पाता हूं ।।


एक मां ही तो थी जो मुझको हर हाल में समझा करती थी ,

ना जाने यह उम्र उसको कहां ढकेल आई हैं ।।


मुझको मेरे बचपन से यह उम्र बुढ़ापे में ले आई है ,

मां की यादों को एक तस्वीर में समेट लाई हैं।।


यह उम्र मुझको न जाने क्यों ,

मेरे बुढ़ापे में ले आई हैं ।।


     


          


12-) मां के रूप अनेक हैं, 

कभी मानो तो मां भगवान हैं । 


ना मानो तो एक वृक्ष की छाल हैं ,

जो खुद मृत होकर भी वृक्ष को बचाती हैं ।


ईश्वर भी जिसके आगे नतमस्तक होते हैं ,

सारे स्वर्ग के रास्ते यहां से तय होते हैं।।


मां समूचे ब्रमाण्ड को ,

खुद की हथेली में समेटे हुए होती हैं ।।


ब्रह्मा विष्णु महेश भी जिसके पलने में सोते हैं,

वह मां ही तो होती हैं ,

जिसके आंगन में तीनों लोकों के स्वामी भी ,

हमेशा नतमस्तक रहते हैं।।



~~आशुतोष दांगी 

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